उत्तराखंड में मुख्यतः पहाड़ी उपभाषा का प्रयोग किया जाता है, जो हिंदी की पांच उपभाषाएं (पूर्वी हिन्दी, पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी हिंदी, बिहारी हिंदी और पहाड़ी हिंदी) के अंतर्गत आती है| उत्तराखंड के लगभग संपूर्ण भाग मध्य पहाड़ी भाषा क्षेत्र में आता है। जिसके अंतर्गत मुख्यतः कुमाऊँनी और गढ़वाली बोलियां बोली जाती है।
इन बोलियों में साहित्य सर्जन और फिल्मों के भी निर्माण हुए है। इन बोलियों के लेखन में देवनागरी लिपि का प्रयोग किया जाता है।
राज्य में हिंदी के अलावा उर्दू, पंजाबी, बांग्ला आदि भाषाएं बोली जाती है। भाषा और उसके बोलने वालों की संख्या इस प्रकार है :-
♦ कुमाऊंनी बोली
राज्य में कुमाऊँनी क्षेत्र के उत्तरी तथा दक्षिणी सीमांत को छोड़कर शेष भू-भाग की भाषा कुमाऊनी है। इस भाषा के मूल रूप के संबंध में विद्वानों के अलग-अलग दृष्टिकोण सामने आते है।
- कुमाऊंनी भाषा का विकास दरद , खस , पैशाची व प्राकृत बोलियों से हुआ है।
- हिंदी की ही भांति कुमाऊंनी भाषा का विकास भी शौरसेनी, अपभ्रंश भाषा से हुआ है।
भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार उच्चारण, ध्वनि तत्व और रूप रचना के आधार पर कुमाऊँनी भाषा को चार वर्गों में तथा उसकी 12 प्रमुख बोलियां निर्धारित की गई है, जो इस प्रकार है :-
पूर्वी कुमाऊनी वर्ग
- कुमैया:- यह नैनीताल से लगे हुए काली कुमाऊं क्षेत्र में बोली जाती है।
- सौर्याली :- यह सौर क्षेत्र में बोली जाती है। इसके अलावा इसे दक्षिण जोहार और पूर्वी गंगोली क्षेत्र में भी कुछ लोग बोलते है।
- सीराली :- यह अस्कोट के पश्चिम में सीरा क्षेत्र में बोली जाती है।
- अस्कोटी :- यह अस्कोट क्षेत्र की बोली है। इस पर नेपाली भाषा का प्रवाह है।
पश्चिमी कुमाऊनी वर्ग
- खसपराजिया :- यह बारह मंडल और दानपुर के आस-पास बोली जाती है।
- पछाई :- यह अल्मोड़ा जिले के दक्षिणी भाग में गढ़वाल सीमा पर बोली जाती है।
- फाल्दा कोटी :- यह नैनीताल के फाल्दाकोट क्षेत्र और अल्मोड़ा के कुछ भागों तथा पाली पछाऊ के क्षेत्र में बोली जाती है।
- चोगर्खिया:- यह चोगर्खा परगना में बोली जाती है।
- गंगोई :- यह गंगोली तथा दानापुर की कुछ पट्टियों में बोली जाती है।
- दनपुरिया :- यह दानापुर के उत्तरी भाग और जौहर के दक्षिण भाग में बोली जाती है।
उत्तरी कुमाऊनी वर्ग
- जोहारी :- यह जौहर व कुमाऊ के उत्तर सीमावर्ती क्षेत्रों में बोली जाती है। इस क्षेत्र के भोटिया भी इसी भाषा का प्रयोग करते है। इस पर तिब्बती भाषा का प्रभाव दिखाई पड़ता है।
दक्षिणी कुमाऊनी वर्ग
- नैनीताल कुमाऊनी या रचभैसी :- यह नैनीताल, भीमताल, काठगोदाम, हल्द्वानी आदि क्षेत्रों में बोली जाती है। कुछ जगह इसे नैणतलिया कि कहते है।
कुमाऊँ क्षेत्र की अन्य बोलियां
मझकुमैया
कुमाऊं तथा गढ़वाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में बोली जाती है। यह कुमाऊनी-गढ़वाली का मिला जुला रूप है।
गोरखाली बोली
यह नेपाल से लगे क्षेत्रों तथा अल्मोड़ा के कुछ स्थानों पर गोरखाओं द्वारा बोली जाती है। मूलरूप से यह नेपाली बोली है।
भावरी
चंपावत के टनकपुर से उधम सिंह नगर के काशीपुर तक भावरी बोली जाती है।
शौका
पिथौरागढ़ का उत्तरी क्षेत्र शौका बहुल है, जो की शौका बोली बोलते है।
राजी
पिथौरागढ़ के अस्कोट, धारचूला और डीडीहाट के आस-पास के बनरौत लोग राजी बोली बोलते है।
बोक्साड़ी
कुमाऊं के दक्षिणी छोर पर रहने वाले बोक्सा जनजाति के लोग बोक्साड़ी बोलते है। जबकि इसी भाग के थारु लोग अपनी बोली बोलते है।
पंजाबी
कुमाऊं का दक्षिणी भू-भाग सिक्ख बहुल है। जसपुर, बाजपुर, ऊधम सिंह नगर, रुद्रपुर, हल्द्वानी आदि क्षेत्रों के पंजाबी भाषी लोग पंजाबी बोली का प्रयोग करते है।
बांग्ला
कुमाऊं के दक्षिण भाग में बंगाली लोगों का भी निवास है, जो कि बांग्ला-भाषा बोलते है।
♦ गढ़वाली बोली
कुमाऊँनी भाषा की भांति गढ़वाल की उत्पत्ति के विषय में भी विद्वानों में मतभेद है। मैक्समूलर ने अपनी पुस्तक ‘साइंस ऑफ़ लैंग्वेज’ में गढ़वाली को प्राकृत भाषा का एक रूप माना है।
बोली की दृष्टि से गढ़वाली को डॉक्टर ग्रियर्सन ने 8 भागों :- श्रीनगर, नागपुरिया, दसौली, बधाणी, राठी, मांझ कुमैया, सलाणी एवं की टीहरयाली में विभक्त किया है।
साहित्य की रचना के लिए विद्वानों ने टिहरी व श्रीनगर के आस-पास की बोली की को मानक गढ़वाली भाषा माना है।
गढ़वाली क्षेत्र की अन्य बोलियां
खड़ी हिंदी
गढ़वाल के हरिद्वार, रुड़की, देहरादून आदि नगरों में खड़ी हिंदी का प्रयोग होता है। इन क्षेत्रों में हरियाणवी खड़ी बोली भी बोली जाती है।
जौनसारी
गढ़वाल क्षेत्र के ऊंचाई वाले स्थान तथा देहरादून के जौनसार-बाबर क्षेत्र में जौनसारी बोली का प्रचलन है।
भिटिया
यह बोली चमोली (गढ़वाल) तथा पिथौरागढ़ (कुमाऊं) के सीमावर्ती क्षेत्रों में भोटिया लोगों द्वारा बोली जाती है।
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